आर्थिक एवं प्राकृतिक आपदाओं , से जूझता किसान

भारत में अन्नदाता की दयनीय स्थिति
जनपद लखीमपुर खीरी से नितेश शर्मा की रिपोर्ट:- हमारे भारत देश में ज्यादातर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हैं ज्यादातर जनसंख्या का जीविकोपार्जन का साधन कृषि है लेकिन हमारे भारत देश में अगर सबसे ज्यादा दुर्दशा किसी की है तो वह है किसान प्राकृतिक एवं आर्थिक आपदाओं से जूझता किसान आखिर आत्महत्या करने को विवश है यहां तक कि प्रकृति की मार को भी झेल रहा है किसान की आए दिन ओला बारिश से फसलें बर्बाद हो रही है अन्नदाता की आय निरंतर प्रभावित हो रही है लेकिन अगर बात करें सरकारों की जो किसानों के, लिए सिर्फ आदेश दिखाई पड़ते बात सिर्फ आदेशों से नहीं बनेगी अगर किसान की बदहाल जिंदगी को सवारना है तो कुछ अहम निर्णय लेने पड़ेंगे जिससे किसान की आर्थिक स्थिति को सुधारने में गति प्रदान हो सके वाकई में अगर अन्नदाता के प्रति चिंतित है और उनकी आय बढ़ाना चाहती हैं तो समुचित रूप से उन्हें संसाधन मुहैया कराने पड़ेंगे हमारे देश में हर रोज सैकड़ों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं आखिर क्यों इसको रोकने के लिए सरकारे क्या महत्वपूर्ण कदम उठा रही है जिससे हमारे अन्नदाता की दयनीय स्थिति एवं उनकी मूलभूत सुविधाओं को ध्यान में रखकर उनको संसाधन मुहैया कराए जाएं हर रोज अखबारों व टीवी चैनलों में किसानों की आत्महत्या करने की खबरें मिलती रहती हैं जो व्यक्ति हमें भरपेट खाना उपलब्ध कराता है आज वही मौत को गले लगाने पर विवश हो रहा हैं!सरकारों व पूंजीपतियों की उपेक्षा और अमानवीयता के कारण किसानों का अपने पैरों पर खड़ा हो पाना मुश्किल नजर आ रहा है!किसान और उसके परिवार की व्यथा कौन सुने!हमारे नसों में फिर भी कुछ जज्बा उठ जाता है!परन्तु, नेताओं को कुछ नहीं होता? सरकार का पूंजीपतियों के प्रति मोह और किसानों के प्रति रूखा व्यवहार दुख पहुंचाता हैं!कई बार यह समझ नहीं आता कि अन्नदाता कह कर किसानों का मजाक उड़ाया जाता या उनकी तारीफ की जाती है! कोई दो हजार रुपए देकर उनका समर्थन लूट लेना चाहते है तो कोई मसीहा बनकर किसानों को अमीर बना देना चाहता है!मीठी मीठी बातें झूठे वादे सुन कर किसानों के कान भर गए हैं!अब तो व अपनी किस्मत पर ही रोते हैं! कई बार जान भी दे देते हैं! सरकारें किसानों को सिर्फ झूठे सपने दिखाती हैं और पूंजीपतियों को मालदार बनाती हैं! सरकारी सेवा वाले मौज कर रहे हैं जबकि किसान बेचारा बना हुआ है! और अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति पर आंसू बहा रहा है!कोई देखने वाला नहीं,किसान बैंकों से केसीसी ऋण लेते हैं एक तो अभाव नुकसान और घाटे के चलते व ऋण नहीं चुका पाते दूसरी ओर बैंक वाले उन पर जबरदस्ती बीमा की किस्त लाद देते हैं!जबकि उससे किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता! सरकारों ने अगर किसानों के हित में तत्काल कदम नहीं उठाए तो इसका खमियाजा समूचे समाज को उठाना पड़ेगा!हमे यह नही भूलना चाहिए कि पेट भरने से ही जीवन चलता है!हम यही कह सकते हैं कि बहुत गीत बने बहुत लेख छपे कि मैं बड़ा महान हूं!पर दुर्दशा ना देखी मेरी किसी ने ऐसा मैं किसान हूं!, आखिर सिर्फ किसानों की चर्चा गीतों एवं कहानियों में सिमट कर रह जाएगी अगर ऐसा ही चलता रहा तो खेती किसानी करना कल्पना मात्र रह जाएगा!
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