भ्रष्टाचार पर लगातार वार होना चाहिए

डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते ही अपनी सरकार का इरादा साफ कर दिया था। कहा था- न खायेंगे और न खाने देंगे। बाद के दिनों में भी पीएम मोदी लगातार भ्रष्टाचार पर प्रहार करने की बात करते रहे हैं। तब शायद किसी को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि देश में अवैध कमाई और दूसरे गलत माध्यमों से अर्जित धन को खोद निकालने के लिए सुस्त पड़े प्रवर्तन निदेशालय (म्क्) को सक्रिय करने की उन्होंने योजना बना ली है। उनकी चेतावनी के बावजूद अवैध धन अर्जित करने की धुन में लोग लगे रहे। ईडी की सक्रियता देखते हुए लगता तो है कि अब उनकी खैर नहीं। कड़वा सत्य है कि राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार एक-दूसरे के परस्पर गठजोड़ से ही पनपते हैं। खास बात यह है कि इस भ्रष्टाचार में निजी क्षेत्र और कार्पोरेट पूंजी की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बाजार की प्रक्रियाओं और शीर्ष राजनीतिक-प्रशासनिक मुकामों पर लिए गए निर्णयों के बीच सांठ-गांठ के बिना यह भ्रष्टाचार इतना बड़ा रूप नहीं ले सकता।
आजादी के बाद भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की यह घनिष्टता तेजी से पनपी है। निजी क्षेत्र को दिए गए ठेकों और लाइसैंसों के बदले लिया गया कमीशन, हथियारों की खरीद-बिक्री में लिया गया कमीशन, फर्जीवाड़े और अन्य आर्थिक अपराधों द्वारा जमा की गई रकम, टैक्स-चोरी में मदद और प्रोत्साहन से हासिल की गई रकम, सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी कंपनी को लाभ पहुंचाने और उसके बदले रकम वसूलने और फायदे वाली नियुक्तियों के बदले वरिष्ठ नौकरशाहों और नेताओं द्वारा वसूले जाने वाले अवैध धन जैसी गतिविधियां प्रशासनिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में आती हैं।
पहले भी घोटाले-घपले और भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते रहे हैं, लेकिन वे अंजाम तक नहीं पहुंच पाये। भ्रष्टाचार के सुरसा की मुंह की तरह बढ़ते जाना उसी का नतीजा है। ईडी ने हाल ही में ताजा आंकड़े जारी किये हैं। उसमें यूपीए और मोदी सरकार के कार्यकाल के नौ साल का लेखाजोखा है। प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि अप्रैल 2014 से मार्च 2022 के दरम्यिान 3,555 केस दर्ज किए गए और 99 हजार 355 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गयी। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के नौ साल यानी जुलाई 2005 से मार्च 2014 तक के कार्यकाल में ईडी ने 1,867 मामले दर्ज किए थे और मनी लॉन्ड्रिंग के तहत 4,156 करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच की थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महज पिछले 4 महीनों में 7,833 करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच हुई है और 785 नए मामले दर्ज किए गए हैं।
यूपीए सरकार के नौ साल के मुकाबले मोदी सरकार के कार्यकाल में ईडी द्वारा दर्ज मामले 88 प्रतिशत तक बढ़े हैं। अप्रैल 2021 से 30 नवंबर 2021 के दौरान देश में मनी लॉन्ड्रिंग के 395 मामले दर्ज हुए थे और 8,989.26 करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच की गई थी। इन आंकड़ों को देखने पर इस बात की आश्वस्ति तो होती ही है कि यूपीए सरकार में सुस्त पड़े ईडी की सक्रियता मोदी के कार्यकाल में बढ़ गयी है। ईडी में 51 सांसदों और 71 विधायकों के खिलाफ जांच जारी है। वे सभी विपक्ष के नहीं हैं। ये जांच एजेंसियां पहले की सरकारों के अधीन भी कार्यरत थीं, लिहाजा आज भी मौजूदा सरकार के संवैधानिक अधिकार-क्षेत्र में हैं। यदि आज इनका दुरुपयोग किया जा रहा है, तो पहले की सरकारों ने भी ‘तोता’ बनाकर रखा था। यह सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी है। मामलों का कम और ज्यादा होना बेमानी है।
मोदी सरकार राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार पर ही नहीं नौकरशाहों की भी लगाम कसे हुए हैं। वर्ष 2019 में मोदी सरकार ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के 22 अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है। जिन 22 अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया गया है वह अधीक्षक और एओ रैंक के हैं। इन्हें जनहित के मौलिक नियम 56 (जे) के तहत सेवानिवृत्त किया गया है। सभी पर भ्रष्टाचार और गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगे थे। जिसके कारण यह फैसला लिया गया था। वैसे यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए सीबीआईसी के वरिष्ठ अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया है। इससे पहले जून 2019 में 15 अधिकारियों को भी सेवानिवृत्त किया गया था। यह अधिकारी सीबीआईसी के प्रधान आयुक्त, आयुक्त, और उपायुक्त रैंक के थे। जिसमें ज्यादातरों पर भ्रष्टाचार, घूसखोरी के आरोप लगे थे। वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद कर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया गया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम 2014 से ही मोदी सरकार का बुनियादी सरोकार रहा है। सचिव स्तर के अधिकारियों और वरिष्ठ नौकरशाहों के साथ बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बिलकुल स्पष्ट किया है कि भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में किसी भी आधार और स्तर पर बर्दाश्त नहीं होगा। अलबत्ता अधिकारी खुद को ही पीएम समझें और आगामी पांच सालों का एजेंडा तैयार करें।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भ्रष्टाचार इसमें बहुत बड़ा व्यवधान है, लिहाजा मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक से शुरू की है। अपने बीते कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने करीब 3 लाख फर्जी कंपनियों पर ढक्कन लगवाए थे। बेनामी संपत्ति और भगौड़ा आर्थिक अपराधी कानून बनाए। करीब 1.25 लाख संदिग्धों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांचात्मक कार्रवाई की जा रही है। अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि ज्यादातर संदिग्धों को जेल की हवा खानी ही पड़ेगी। बैंकों में भ्रष्ट लेन-देन की भी जांच जारी है। संपत्ति की खरीद-बेच में नकदी की सीमा तय कर दी गई है। अब काला-सफेद की गुंजाइश बहुत कम रह गई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम जनता की अपेक्षा यह है कि अंततरू भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन, सरकार ही होनी चाहिए।
वास्तव में राजनेताओं का भ्रष्टाचार लूके-छिपे यथावत बदस्तूर जारी है। यह एक बड़ा सच है कि यदि नेता लोग रिश्वत नहीं खायेंगे, डरा-धमकाकर पैसा वसूल नहीं करेंगे और बड़े व्यावसायिक घरानों की दलाली नहीं करेंगे तो वे चुनावों में खर्च होने वाले करोड़ों रुपया कहां से लाएंगे? उनके ऐशोआराम पर रोज खर्च होनेवाले हजारों रुपया का इंतजाम कैसे होगा? उनकी और उनके परिवार की चकाचैंधपूर्ण जिंदगी कैसे चलेगी? इस राजनेताओं की भ्रष्ट अनिवार्यता को ढाई हजार साल पहले आचार्य चाणक्य और यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने अच्छी तरह समझ लिया था। इसीलिए चाणक्य ने अपने अति शुद्ध और सात्विक आचरण का उदाहरण प्रस्तुत किया और प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक में दार्शनिक राजा की कल्पना की, जिसका न तो कोई निजी परिवार होता है और न ही निजी संपत्ति। लेकिन आज की राजनीति में परिवारवाद और निजी संपत्तियों के लालच ने देश की राजनीति को बर्बाद करके रख दिया है। नेताओं का भ्रष्टाचार ही नौकरशाहों को भ्रष्ट होने को प्रोत्साहित करता है।
केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही शुरूआत भर है, जबकि भ्रष्टाचार की जड़ें हमारे मानस और समाज में बेहद गहरे फैली हैं। इन मामलों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासन को भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न से मुक्त करना कितना जटिल और मुश्किल काम है। प्रधानमंत्री से ही उम्मीदें हैं, क्योंकि केंद्र सरकार ने यह करने की शुरूआत की है। चूंकि हमारे सिस्टम में भ्रष्टाचार पूरी तरह धंसा हुआ है, ऐसे में मोदी सरकार को समस्या को जड़ से खत्म करने के लिये दूसरे विभागों में भी भ्रष्टाचारी नेताओं, अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए, तभी देश का बेड़ा पार हो पाएगा।
-चिकित्सक एवं लेखक
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