राजा जालिम सिंह के किले अमोढ़ा पर शहीद हुए वीर सपूतों के बारे व स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को किया याद

लाल जी वर्मा ब्यूरो चीफ (बस्ती)
आजादी का अमृत महोत्सव एवं मेरी माटी मेरा देश के अवसर पर छावनी पुलिस व प्राचार्य पचवस डीग्री कॉलेज के नेतृत्व में बच्चो को राजा जालिम सिंह के किले अमोढ़ा पर शहीद हुए वीर सपूतों के बारे व स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को किया याद
छावनी थानाध्यक्ष दुर्गेश कुमार पाण्डेय के नेतृत्व में उर्मिला शांतिनिकेतन एकैडमी के बच्चों को शहीद स्मारक स्थल छावनी पर शहीद हुए जवानों के बारे में जानकारी दी गई। बच्चों को बताया गया की भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 ईसवी में बस्ती का अतुलनीय योगदान रहा है अमोढ़ा राज्य की अंतिम रानी तलाश कुंवरी अंग्रेजों को कई बार खदेड़ा पूर्वांचल की नौजवान रानी तलाश कुवरी के समर्थन में देश की आज़ादी के लिए चल पड़े इसी छावनी स्थित पीपल के पेड़ की डालो में 500 से अधिक की संख्या में लोग लटक कर फांसी पर झूल गए। इन वीर जवानों के अतुलनीय योगदान के फल स्वरूप 14 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत देश आजाद हुवा पूरे देश में छावनी जैसा कोई स्थल नहीं है जहां पर 500 से अधिक लोगों को एक पेड़ पर लटका कर फांसी दी गई हो।
ओ देश मेरे तू जीता रहे
तूने शेर के बच्चे पाले हैँ
एक लाल हुआ बलिदान तो क्या
सौ लाल तेरे रखवाले हैं
रानी के बलिदान ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को बना दिया जनक्रांति
थानाध्यक्ष छावनी द्वारा बच्चों को सम्बोधित करते हुए बताया कि
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को जनक्रांति का रूप देने वाली अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवरि के बलिदान को आज भी गौरव के साथ याद किया जाता है। उस आंदोलन में रानी ने पूरी ताकत से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। तब रानी के सिपहसालारों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग में शामिल सैकड़ों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने छावनी में पीपल के पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी थी। लेकिन क्रांतिकारियों का हौसला नहीं डिगा। फिरंगियों को देश से खदेड़ने की लड़ाई जारी रखी और उन्हें कामयाबी भी मिली।
देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर हर तरफ उल्लास है। इसके पीछे उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अमर बलिदान है, जिन्हें याद कर आज भी हमें गर्व की अनुभूति होती है। ऐसा ही एक नाम महारानी तलाश कुंवरि का है, जिन्हें बस्ती ही नहीं, पूर्वांचल के लोग याद करते हैं। छावनी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अमोढ़ा के पास एक ऐतिहासिक स्थान है। इसे राजा जालीम सिंह के राज्य अमोरहा (जिसे अमोढ़ा भी कहा जाता है) के स्वतंत्रता संग्राम की जगह के रूप में भी जाना जाता है। 1857 के विद्रोह के दौरान भारतीय सेनानियों के लिए यह मुख्य आश्रय था, और एक पिपल पेड़ के लिए जाना जाता है जहां जनरल किले की हत्या के बाद ब्रिटिश सरकार ने लगभग 250 स्वतंत्रता सेनानी को फांसी दी थी। स्वतंत्रता सेनानिनियो की याद में अमोढ़ा किले पर बैठे है।
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