उत्तर प्रदेशकुशीनगर

श्रीरामजानकी मठ कसया में हर्षोल्लास से मना गुरू पूर्णिमा का पर्व

ब्यूरो रिपोर्ट सत्येंद्र कुमार दुबे कुशीनगर। श्रीरामजानकी मठ कसया में हर्षोल्लास से मना गुरू पूर्णिमा का पर्व। बारिश के बावजूद शिष्यों का लगा रहा तांता- श्रीरामजानकी मंदिर (मठ) कसया में सोमवार को गुरू पूर्णिमा का पर्व भक्ति भावना एवं हर्षोल्लास से मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ ठाकुर जी की आरती व पूजन के पश्चात् महंत त्रिभुवन शरण दास व पुजारी देव नारायण शरण द्वारा अपने गुरू राम प्रिया शरण के प्रतिमा के पूजन से हुआ। इसके बाद मठ के पुजारी देव नारायण सहित कसया नगर व दूर दराज से आये शिष्यों ने आस्था व श्रद्धा के साथ महंत गुरू त्रिभुवन शरण दास के पाँव पखारा तथा तिलक लगाकर आरती उतारा एवं आशीर्वाद प्राप्त किया।शिष्यों को सम्बोधित करते हुए महंत त्रिभुवन शरण दास ने कहा कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। यह पर्व गुरू के प्रति शिष्य को श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देता है। गुरू अपने शिष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। महंत जी ने कहा कि गुरू-शिष्य परम्परा अति प्राचीन काल से है। देवताओं के गुरू वृहस्पति तो राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य थे। भगवान राम के गुरू वशिष्ठ व विश्वामित्र, भगवान कृष्ण के गुरू संदीपनी ऋषि थे। वर्तमान समय में भी सनातनी परम्परा में किसी शुभ कार्य को करने के लिए दीक्षा लेना जरूरी रहता है। गुरू मानवीय जीवन के श्रेष्ठ गुणों को विकसित करता है। गुरू को शिष्य द्वारा किये जा रहे श्रेष्ठ कार्यों में प्रोत्साहन देना चहिए न कि विघ्न डालना चाहिए। बलि द्वारा वामन भगवान को दिये जा रहे दान में विघ्न डालने पर शुक्राचार्य को एक आंख गवानी पड़ी।गुरू पूजन का कार्य आचार्य रामजी पांडेय द्वारा विधि विधान से सम्पन्न कराया गया। इस अवसर पर डॉ0 हरिओम मिश्र, रामजी शरण दास, प्रदीप अग्रहरि, सिया शरण पांडेय, हृदयानंद तिवारी, रमा शंकर कुशवाहा, सुरेश प्रसाद गुप्त , विजय राय, निशांत सिंह, रजनीश, खुशी, अंकिता, सीता देवी, गुड्डी देवी, गंगोत्री देवी, कृष्णावती देवी, वंदना पांडेय इत्यादि उपस्थित रहे।

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